थे मेरे भी कई ख़्वाब।
थी ख़्वाहिश ओर बच्चों की तरह पढ़ने की ।
थी चाह कुछ बनने की पर सोचा ना कभी की हाँथों मैं है ही नहीं लकीरें कुछ पकड़ने की कुछ समेटने की ।।
पकड़ा के झोला छिन लिए ख़्वाब मेरे मेरी तक़दीर ने नहीं तो थे ख़्वाब मेरे भी कई आसमान को छूने की बादलों के साथ चलने की उड़ने की आज़ादी की बराबरी की खेलने के ।।
थे मेरे भी कई ख़्वाब ।।
khwab agar lakshya bun jaye to yakinan purey hote hai... Pain and guilfull shayari but Nyc words
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